- चंद्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई ।
- चंद्रयान मिशन क्या है ।
- चंद्रयान 1 बारे में बताइए।
- चंद्रयान 2 के बारे में बताइए
- चंद्रयान-3 के बारे में बताइए
- इसे दक्षिण ध्रुव पर ही क्यों उतारा।
चंद्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई ।
लाखों वर्ष पूर्व थिया नाम का एक पिंड जब पृथ्वी के सामने से गुजरा , तो उसने पृथ्वी के साथ एक जोरदार टक्कर की जिससे पृथ्वी के एक हिस्से के कुछ भाग टूट कर अलग हो गया, टूटा हुआ भाग पृथ्वी के गोल चक्कर लगाने लगा, जिसे ही हम आज चंद्रमा के नाम से जानते हैं इसी को हम वैश्विक चंद्र मैग्मा परिकल्पना भी कहते हैं ।
चंद्रयान मिशन क्या है ।
चंद्रयान एक ऐसा मिशन है जिसमें भारत द्वारा भेजें गए वह सभी उपग्रह है जो चंद्रमा में भेजे गए है। और हमे वहा से बारे में जानकारी देता है। भारत ने अभी तक चंद्रमा में तीन मिशन कर लिए हैं ,जिन्हें हम चंद्रयान 1 ,चंद्रयान 2, चंद्रयान 3 के नाम से जानते हैं।

चंद्रयान 1 बारे में बताइए
भारत में चंद्रमा पर अपना पहला मिशन 22 अक्टूबर 2008 में श्रीहरिकोटा से अपना चंद्रयान 1 लॉन्च किया ,यह उपग्रह चंद्रमा की सतह के चारों ओर परिक्रमा करेगा ,इसमें दूसरे देश जैसे अमेरिका ,जर्मनी ,ब्रिटेन ,स्वीडन आदि देशों के उपकरण भी लगे थे, यह एक ऑर्बिटल मिशन था। जिसका अर्थ है यह चंद्रमा के कक्षा में घूम कर वहां के बारे में जानकारी देगा।
14 नवंबर 2008 को यह चंद्रमा की सतह पर उतरा और वहां झंडा लगाने वाला दुनिया चौथा देश बन गया, चंद्रयान का उद्देश्य वहां पानी की तलाश करना और हीलियम के बारे मे पता करना था, इसमें 200 किलोमीटर ऊंचाई पर रिमोट सेंसिंग नाम का उपग्रह लगाया था जो चंद्रमा की परिक्रमा करके जानकारी देता था ।उसे वक्त इसरो के मुखिया श्री माधवन नायर थे, वहां बर्फ और रासायनिक खनिज के प्रमाण की प्राप्ति के बारे में पता चला और 2010 और 2011 में यहां जानकारी सबको दिखा दिए गए । 2009 के दौरान कक्षा की स्पीड बढ़ा दी गई जिससे कि 29 अगस्त को संचार टूट जाने के कारण मिशन समाप्त हो गया । उस समय तक इस उपग्रह ने चंद्रमा के 3400 से अधिक बार परिक्रमा कर ली थी। जिससे हमे वहा के बारे मे जानकारी मिली।
Objective – remote sensing
Launch date – 22 oct 2008
Launch site – SDSC , shar sriharikota
Launch rocket – PSLV- C11
Mission duration – 2 year.
achieved 10 mouth 6 day
Weight – 1380 kg
Note – चंद्रमा का तापमान 130 डिग्री के पास और रात में – 180 डिग्री के पास पहुंच जाता है चंद्रमा पर टाइटेनियम का पता के साथ कैल्सियम , लोहे ,एल्युमिनियम के बारे में पता चला।
चंद्रयान 2 के बारे में बताइए
यह चंद्रयान 2 चंद्रमा की खोज करने के लिए बनाया गया एक मिशन था ,जिसे ISRO ने विकसित किया । जिसे ISRO ने श्रीहरिकोटा से 22 जुलाई 2019 को 2:45 में लॉन्च किया। जिससे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करना था। इस भूकंप विज्ञान ,खनिज पहचान रासायनिक संरचनाएं आदि के विस्तृत अध्ययन के विस्तार के लिए डिजाइन किया गया था जिससे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में पता लगाए सके। यह मिशन ऑर्बिट मिशन के साथ लैडर (विक्रम ) और रोवर (प्रगान) को पहुंचना था। जिसमें आर्बिटल चंद्रमा के चारों ओर घूम कर वहां के बारे में जानकारी देगा। लैडर जो रोवर को चंद्रमा पर पहुंचएगा और चंद्रमा की जानकारी isro तक पहुंचाएगा। रोवर एक ऐसा उपकरण है जो जिसमें 6 टायर लगे हुए हैं जो आसपास घूम कर जानकारी को इकट्ठा करेगा।
20 अगस्त 2019 को चंद्रयान-2 ने ऑर्बिटल को चंद्राकक्ष में स्थापित किया । उसके बाद 2 सितंबर 2019 को लैडर और रोवर को चंद्रमा पर उतरने से 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर संचार का कनेक्शन टूट गया जिससे यह अधूरा रह गया था।
Objective – moon orbital leader and
Rower
Rocket weight – 3,877kg
Rocket name – GSLV Mk III M1
Launch date – 22nd July 2019
इसमें चंद्र बाहीमंडल में आर्गन 40 का पता लगाया।
चंद्रयान-3 के बारे में बताइए
चंद्रयान 2 जिसमें लैडर और रोवर नष्ट हो गए थे
उन्हीं को दोबारा भेजना था जिसे चंद्रयान-3 का मिशन दिया गया जिसे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में लैंड करना था । इसने 14 जुलाई 2023 को उड़ान भरी इसरो के श्रीहरिकोटा से। 25 जुलाई तक यह पृथ्वी के अर्बिट को कंप्लीट कर दिया इसने । उसके बाद रूट चेंज करके चंद्रमा की ओर 5 अगस्त में भेज दिया गया फिर चंद्रमा के चक्कर लगाते लगाते यह चंद्रमा के पास पहुंच गया, 6 अगस्त से 14 अगस्त तक। यह काफी पास पहुंच गया उसके बाद इसकी एक सॉफ्ट लैंडिंग किया जिससे चंद्रयान-3 सफल रहा और यह मिशन भारत और विश्व के लिए ऐसा करने वाला प्रथम देश बना जिसने दक्षिणी ध्रुव पर लैंड किया ।
Mission – lander and rover
Launch mass – 3900kg
Rocket name – MARK-III (LVM-3 )
Launch date – 14 July 2023
Land date – 23 August 2023

इसे दक्षिण ध्रुव पर ही क्यों उतारा।
क्योंकि अभी तक सभी अंतरिक्ष यान चंद्रमा के भूमध्य रेखा पर ही उतरे हैं, क्योंकि वहां लैंड करना आसान है और सूर्य की रोशनी आती है जिससे कि उपकरण सही से कम करें जबकि ध्रुव पर यह क्षमता कठिन होता है वहां -230 से नीचे तापमान रहता है और वहां धूप भी नहीं पहुंचती इसलिए भारत ने यह करके पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया।