• इजराइल देश की मांग कहां से उठी।
  • 1920 में तुर्क साम्राज्य का विभाजन
  • UNO के द्वारा फिलिस्तीन का निष्कर्ष
  • जेरूसलम सबसे प्रमुख जगह क्यों है
  • WAR 1 – 1948 ( 6 अरब देश vs इजरायल)
  • WAR – 2 स्वेज नहर संकट 1956
  • WAR 3 – ( 1967 ) 6 DAY WAR
  • War – 4 ( Yom kippur war 1973 )
  • 1982 लेबनान युद्ध
  • हमास क्या है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई।
  • गाजा पट्टी पर हमास का अधिकार

तुर्क साम्राज्य का बिखराव
इंग्लैंड और पश्चिमी देशों ने मिलकर तुर्क साम्राज्य पर धावा बोल दिया, जिससे तुर्क साम्राज्य पूरी तरह से अलग हो गया 1920 में। जिसमें फिलिस्तीन भी था। बिखराव के बाद तुर्क साम्राज्य पूरी तरह से अलग हो गया था सभी अलग-अलग देश में बट गए थे।

इजराइल देश की मांग कहां से उठी।


फिलिस्तीन जहां यहूदियों और मुसलमान रहा करते थे, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हिटलर ने यहूदियों पर बहुत जुल्म किया था। और इंग्लैंड ने तुर्क साम्राज्य को तोड़ने के बाद यहूदियों के लिए अलग देश बनाने कोशिश की। जिसके तहत इंग्लैंड ने 1917 के समय बाल्फोर घोषणा की । जिसमें फिलिस्तीन के जगह पर इजराइल को भी जगह देने की मांग हुई , जिससे यहूदियों के लिए एक सुरक्षित देश बन सके। इससे यहूदियों ने इंग्लैंड के फेवर में चले गए ( यहूदी देश अमीर और टेक्नोलॉजी में काफी अच्छी है ) इसलिए अपने टेक्नोलॉजी सभी इंग्लैंड के साथ साझा करने लगे।

Note – 1916 में इंग्लैंड ने फ्रांस से भी वादा किया था कि इजराइल देश आपके अंतर्गत होगा और 1915 में अरब के राजा से भी वादा किया था। ( इंग्लैंड ने ऐसा करने की वजह प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस और अन्य देश उसकी सहायता करें इसलिए उसने यह दोहरी चाल चलाई।)

1920 में तुर्क साम्राज्य का विभाजन
1920 में तुर्क साम्राज्य का विभाजन हो गया जिसमें तुर्क साम्राज्य अन्य देशों में टूट गया । अंत में फिलिस्तीन देश को बांटने की बारी आई जिसमें फ्रांस , इंग्लैंड , अरब देशों में विवाद हो गया। जिसके तहत लीग ऑफ नेशन की स्थापना की गई । लीग आफ नेशन की तहत यह क्षेत्र इंग्लैंड को सौंप दिया। क्योंकि यह बहुत विवादित जगह माना गया।

1922 में मील कमीशन का निष्कर्ष
जब इंग्लैंड, फ्रांस और अरब देशों में फिलीस्तीन को लेकर विवाद हुआ । इसलिए उस समय मील कमीशन बना। जिसके तहत या निष्कर्ष निकाला गया कि फिलीस्तीन को तीन भागों में बांटा जाए । जिसमें यहूदियों इसके समर्थक बने लेकिन अन्य अरब देश इस निष्कर्ष से खुश नहीं थी इसलिए यह और विवाद में बना रहा।

UNO के द्वारा फिलिस्तीन का निष्कर्ष
द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हो जाने के बाद UNO की स्थापना की गई । इसकी स्थापना 24 अक्टूबर 1945 में की गई , लेकिन उस समय तक फिलिस्तीन वाले मामले में विवाद बना रहा। इंग्लैंड ने इस विवाद को UNO को सौंप दिया। UNO ने मील कमीशन को ही बनाए रखा जिसके तहत फिलीस्तीन को तीन भागों में बांट दिया । उसके द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया ।जिसमें यहूदियों को 44% और अरबी लोगों को 55% , जेरूसलम को 1% दिया। इसी के साथ फिलिस्तीन देश को अब यहूदियों के द्वारा इजरायल नाम रखा । ( इजरायल पहले एक शहर था ) । अब पूरे को इजरायल कहा जाता है। जैसे ही फिलीस्तीन को तीन भागों में बांटा उसके बाद इंग्लैंड ने अपनी सेना को 14 मई 1948 को वापस बुला लिया। इसी के साथ ही अब फिलिस्तीन देश को इजरायल कहा जाने लगा। 1% वाले हिस्से को जेरूसलम को UNO ने अपने अंतर्गत रखा ।

जेरूसलम सबसे प्रमुख जगह क्यों है
जेरूसलम ईसाईयो, यहूदी और मुसलमानो के लिए तीनों के लिए प्रमुख है। तीनों के लिए यह पवित्र है क्योंकि यरुशलम में ईसा मसीह पैदा हुए थे इसलिए वह ईसाइयों के लिए यह पवित्र है। और वेस्टर्न वॉल का संबंध यहूदियों से है जो जरुशलम में है , अलेक्सा मस्जिद से मोहम्मद स्वर्ग गए थे इसलिए मुस्लिम धर्म में इस जगह को पवित्र मानते हैं।

इजरायल देश जहां उसके पास 44% जगह थी फिलिस्तीन के बंटवारे से अन्य अरब देशों को यह पसंद नहीं आया इसलिए इजरायल पर अन्य मुस्लिम देशों के द्वारा हमला किया । आइए इजरायल के द्वारा लड़े गए युद्ध के बारे में पड़े।

WAR 1 – 1948 ( 6 अरब देश vs इजरायल)
15 मई 1948 में इजरायल की स्वतंत्रता की घोषणा के बाद वहां अरब राज्यों और इजरायल के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया । जिसमें मिस्त्र , जॉर्डन , सीरिया , इराक ने फिलिस्तीन अरबों की जगह पर कब्जा कर दिया। उसके बाद इजरायल पर आक्रमण करने लगे। इजरायल ने अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए उसने इस युद्ध को जी जान से लड़ा। कई सारे फिलिस्तीन लगभग 7 लाख वे अरब देश भाग गए और अन्य देशों से यहूदी इजराइल में आने लगे था। यहूदियों की संख्या कम थी इसलिए 1947 में वहां के प्रमुख नेता डेविड बेन गुरियन ने सभी इजरायल व्यक्तियों को सेना की ट्रेनिंग लेने का आदेश पास किया। अंत में समझौते के बाद इजरायल ने 44% वाले जगह को 80% में बदल लिया और इस युद्ध में फिलिस्तीन अरब, मिस्र , सीरिया की हार हुई।

WAR – 2 स्वेज नहर संकट 1956


मिस्र ने 1859 में स्वेज नहर का निर्माण कार्य फ्रांसीसी कंपनी को सोपा। यह कंपनी का नाम यूनिवर्सल स्वेज जहाज कंपनी थी । उसने यह नहर 10 साल में बना दिया था, जो 1859 से 1869 तक पूरा हो गया था। यह नहर मिस्र के पोर्ट स्वेज से पोर्ट सईद तक है, जिसकी लंबाई 193.3 किलोमीटर और जिसकी चौड़ाई 205 मीटर और गहराई 24 मीटर है, उसने मिस्र के साथ समझौता किया था कि वह इसे 99 साल तक अपने अंतर्गत रखेगी। और वह मिस्र को शुद्ध लाभ का उसे 15% तक हिस्सा देगी । 1975 में मिस्र की आर्थिक स्थिति सही न होने के कारण उसने अपना 15% का हिस्सा फ्रेंच को दे दिया। इसके बाद स्वेज नहर पर मिस्र का कोई अधिकार ना रहा जिसमें 44% ब्रिटेन का और 56% फ्रांस का था। क्योंकि स्वेज नहर बनाने वाली कंपनी पर इन्हीं देशों ने पैसा लगाया था।
साल 1956 में मिस्र के राष्ट्रपति ( अब्देल नासेर ) ने स्वेज नहर को राष्ट्रीयकरण कर दिया ( स्वेज नहर अब मिस्र के सरकार के अंतर्गत आएगा। ) स्वेज नहर कंपनी के समझौता वर्ष पूरे ना होने से पहले मिस्र के राष्ट्रपति द्वारा इस पर राष्ट्रीयकरण करने के पीछे उनका कहना था – मिस्र सरकार नील नदी पर असवान डैम बनाना चाह रही थी। जिसमें US ने अनुदान का वादा दिया था । जो बाद मे देने से मना कर दिया , जिससे पैसों के अभाव के कारण मिस्र सरकार ने तय सीमा से पहले ही स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। जिससे ब्रिटेन पूरी तरह से आग बबूला हो गया । और ब्रिटेन ने फ्रांस और इजराइल से सहायता मांगी और तीनों देशों ने एक साथ मिस्र के ऊपर धावा बोल दिया। ब्रिटेन द्वारा ऐसे करने से USA ब्रिटेन से नाराज हो गई और उस पर secession लगाने लगी। उसके बाद ब्रिटेन आर्मी और फ्रांस आर्मी पीछे हट गई । फिर इजरायल के साथ समझौता हुआ
उसके बाद इसराइल के लिए अकाबा की खाड़ी से व्यापार करने का अधिकार दे दिया।

WAR 3 – ( 1967 ) 6 DAY WAR
यह युद्ध 6 दिनों तक चला । इस युद्ध में मिस्र, जॉर्डन , सीरिया की बुरी तरह से हार हुई । इजराइल के द्वारा लड़े इस युद्ध को 6 day war के नाम से जाना जाता है,
इस युद्ध की शुरुआत 5 जून 1967 में हुई जो 10 जून 1967 को खत्म कर दिया गया। इस युद्ध में मिस्र , सीरिया , जॉर्डन को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा जिसका असर बहुत लंबे समय तक इन देशों में देखने को मिला।
इस युद्ध की शुरुआत कुछ इस प्रकार हुई । सोवियत खुफिया के द्वारा यह खबर फैला दी गई। कि इजराइल आर्मी सीरिया की तरफ अपनी फौज लेकर बढ़ रही है। यह खबर जब मिस्र को पहुंची । उस समय मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासेर ने सीरिया का साथ देने का वादा किया , जिससे इजराइल आर्मी को युद्ध की धमकी देने लगा। और मिस्र की सरकार ने सिनाई में अपनी सेना को उतार दिया। उसके बाद मिस्र ने जॉर्डन देश से मिलकर Strait of Tiran जो अकाबा की खाड़ी और लाल सागर को जोड़ती है। यहां से इजराइल के लिए प्रतिबंध लगा दिया। यह रूट इजरायल के लिए काफी प्रमुख था। उसके बाद इजरायल सेना ने 5 जून 1967 में मिस्र की वायु सेवा पर आक्रमण किया जिससे मिस्र की 90% वायु सेना खत्म कर दिया। उसी दिन जॉर्डन की वायु सेना पर भी आक्रमण किया। जिससे जॉर्डन को भी भारी नुकसान हुआ। इजरायल द्वारा जमीनी सेना पर भी ठीक इसी प्रकार से हमला किया गया जिससे यह देश पूरी तरह से हारने लगे । 10 जून आते-आते इजराइल सेना ने सीरिया के गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया।
इस युद्ध के बाद इन देशों की स्थिति काफी खराब हो गई जिससे इन्होंने इजरायल के साथ समझौता किया।

Note – इस युद्ध से इजराइल ने मिस्र के सिनाई पर अपना अधिकार कर लिया , जिसे बाद मे छोड़ दिया गया , और इजराइल सेना ने गाजा पट्टी पर अपना अधिकार किया जिसको भी 2005 में छोड़ दिया गया । लेकिन सीरिया के गोलान हाइट्स पर इजराइल का अभी भी अधिकार है

War – 4 ( Yom kippur war 1973 )
6 अक्टूबर 1973 के दिन योम किप्पुर ( जो कि यहूदियों का सबसे पवित्र त्यौहार होता है। ) इस दिन यहूदियों के लिए छुट्टी का दिन होता है सभी यहूदी लोग इस त्योहार मनाते है , त्योहार के कारण इजरायली सेना बॉर्डर पर पूर्ण रूप से तैयार नहीं थी, जिसका फायदा मिस्र और सीरिया ने उठाया, यह इजरायली सेना से 10 गुना सेना को लेकर युद्ध करने के लिए पहुंच गई। इस युद्ध को अक्टूबर युद्ध या अरब इजरायल युद्ध 1973 भी कहते हैं।
6 अक्टूबर 1973 के दिन सीरिया ने इसराइल पर आक्रमण कर दिया । इसी के साथ योम किप्पुर की युद्ध की शुरुआत हो गई । इस दिन इजरायली सेना अपनी तैयारी पर नहीं थी इसका फायदा मिस्र ने उठाया और ऑपरेशन बद्र (1973) के तहत सिनाई पर अटैक कर दिया। जहां मिस्र ने 70,000 सैनिक, 2,000 टैंक के साथ सिनाई पर पहुंच गई।
दूसरी ओर से सीरिया ने 40,000 सेना के साथ गोलान हाइट्स पर आक्रमण कर दिया ।
इस आक्रमण से ऐसा लग रहा था जैसे इजराइल का बचाना मुश्किल है।
इजराइल के प्रधानमंत्री golda meir ने अमेरिका से सहायता मांगी। USSR द्वारा सीरिया और मिस्र को हथियार पहुंचाई जा रही थी। अमेरिका को डर था अगर इजराइल की सहायता ना करे तो वह न्यूक्लियर हथियार का इस्तेमाल कर सकता है, इसराइल ने 9 अक्टूबर को न्यूक्लियर हथियार को तैयार कर दिया था।
यह खबर जब अमेरिका के राष्ट्रपति Richard nixon को पहुंची, उन्होंने इस युद्ध में घुसने का निर्णय किया । जिसे ऑपरेशन निकल ग्रास कहा गया। इसके बाद अमेरिका द्वारा इजरायली सेना को हथियार दिए गए। इजरायली सेना द्वारा मिस्र की सेना को पीछे करते-करते इजरायली सेना मिस्र के अंदर घुस गई।
इजरायली सेना द्वारा मिस्र के अंदर आके उनके एयरक्राफ्ट मिसाइल को नष्ट कर दिए गए। अब मिस्र खुद की सेना को अपने घर पर प्रवेश नहीं कर सकती थी। दूसरी ओर से भी सीरिया को भी पीछे हटा दिया गया । जहां 22 अक्टूबर तक गोलान हाइट्स से पीछे कर दिया गया। आप इजरायली सेना सीरिया के राजधानी Damascus तक पहुंच गई थी। इसके बाद मिस्र और सीरिया की सहायता को USSR करने को तैयार थी। जिसके ख़िलाफ़ अमेरिका सरकार आने लगी । इसके बाद जो 28 अक्टूबर को उनके बीच समझौता का फैसला हुआ। इसके बाद मिस्र को उसका सिनाई पेनिनसुला दे दिया गया।

1982 लेबनान युद्ध


जिसे इजराइल सरकार द्वारा ऑपरेशन पीस नाम दिया गया। बाद में इस ऑपरेशन को लेबनान युद्ध कहा गया।  6 जून 1982 में इजराइल रक्षा बलों ( Israel Defense Forces IDF ) ने दक्षिणी लेबनान पर आक्रमण कर दिया । निदान के संगठन ने UK में इजरायल के राजदूत को मार दिया गया और इजरायल प्रधानमंत्री ने इस घटना का फिलीस्तीन मुक्ति संगठन ( Palestinian Liberation Organization PLO ) को ठहराया ।  PLO लेबनान के फिलिस्तीन लोग जो आतंकवादि भर्ती में शामिल थे, जिन्होंने 1948 में फिलीस्तीन से हटा दिया गया ।  1970 में उन्हें जॉर्डन देश ने भी निकाल दिया गया।  जिसके बाद ये दक्षिणी लेबनान में रहने लगे। दक्षिणी लेबनान में इनके हिंसा के कारण  गृह युद्ध हुआ । ( 1975 – 1990) में तक यह गृह युद्ध जारी रहा। 1978 में इजरायल द्वारा लेबनान युद्ध में PLO को उत्तरी की ओर भगा दिया गया।  जिसके बाद इजरायली द्वारा दक्षिणी लेबनान के भाग लेबनान सेना को दे दिया गया।

युद्ध की शुरुआत कैसे हुई
PLO द्वारा इजराइल लोगों की हत्या करने के बाद 14 मार्च 1978 को इसराइल के द्वारा दक्षिणी लेबनान पर आक्रमण करके PLO को दूर धकेल दिया।  इस ऑपरेशन को ऑपरेशन लितानी कहा गया। बाद में दक्षिणी लेबनान को लेबनान की सेना को ही दे दिया गया । उसके बाद भी यह युद्ध जारी रहा। उसने बाद 1982 में 6 जून को इजरायल ने दोबारा PLO पर हमला किया जो दक्षिणी लेबनान से आक्रमण कर रहे थे । जिसमें 15,000 से 20,000 लोग मारे गए जिसमें ज्यादा लोग सब नागरिक थे। इस प्रकार हमास की की उत्पत्ति हुई।

हमास क्या है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई।


1987 में इजराइल ने गाजा में रहने वाले फिलिस्तीन लोगों पर कहीं हमले किये क्योंकि गाजा में मुस्लिम रहते थे और वे यहूदियों से नफरत करते थे। फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह जिसे हम हमास नाम से जानते हैं । हमास जो कि फिलीस्तीन मुस्लिम है जो कि इजरायल द्वारा भगा दिए गए थे। जिन्हें अब हमास के नाम से जानते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य इजराइल का अस्तित्व मिटाना है । और आए दिनों इजराइल और हमास के युद्ध की खबरें सुनाई पड़ती है और यह युद्ध 1987 से समय से चल रहा है इसमें कई सारे नागरिकों की जान भी गई हैं 1997 से यूरोपीय संघ और अन्य पश्चिमी देशों ने हमास को आतंकवादी संगठन मानते हैं। जिसके कारण हमास ने 2007 में गाजा पर अपना अधिकार किया जिसके तहत हमास ने गाजा पर अधिकार करके इजराइल को चुनौती दी।  हमास को अरब देशों का समर्थन प्राप्त है।

गाजा पट्टी पर हमास का अधिकार
गाजा पट्टी जो लगभग 41 किलोमीटर लंबा 10 किलोमीटर चौड़ा वाला क्षेत्र है जो हमास ने 2007 में अपने कब्जे में ले लिया था जहां अभी लगभग 2.3 मिलियन लोग रहते हैं हमास लोग इस मुस्लिम स्टेट बनाना चाहते हैं हमास के शीर्ष नेता जिन्हें इस्माइल हानियेह है।

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