- हिंदी भाषा में सबसे छोटी इकाई
- स्वरों के प्रकार बताए।
- मात्रा के आधार पर स्वर
- उच्चारण के आधार पर स्वर
- मुखाकृति के आधार पर स्वर
- व्रताकार / वृत्तमुखी के आधार पर स्वर
- प्रयत्न के आधार पर स्वर:
- व्यंजन कौन से होते है
- प्रयत्न के आधार पर व्यंजन के भेद
- स्पर्शी व्यंजन ,संघर्षी व्यंजन ,नासिक्य व्यंजन
- पाश्विक व्यंजन ,उत्प्रेक्षित व्यंजन ,पाश्विक व्यंजन
- लुण्ठित व्यंजन ,अल्पप्राण ,सघोष
हिंदी भाषा में सबसे छोटी इकाई
वर्ण / ध्वनि < अक्षर < शब्द / पद < पदबंद < उपवाक्य < वाक्य
वर्ण — अ , आ , क् , ख्
अक्षर — क , ख
M. Imp. – किसी भी व्यंजन के साथ हम 10 मात्राओं का प्रयोग कर सकते है।
‘अ ’ का प्रयोग नही होता । इसमें मात्रा नही होती।
- हिंदी भाषा का विकास किस प्रकार हुआ।
संस्कृत – पालि – प्राकृत – अपभश – अपहट – हिंदी . - संस्कृत में स्वर – 13
- पालि में स्वर – 10
ऋ का प्रयोग नही होता - प्राकृत में स्वर – 10
ऋ का प्रयोग नही होता - अपभश में स्वर – 8
ऋ , ए , औ का प्रयोग नही होता - हिंदी में स्वर – 11
स्वरों के प्रकार बताए।
- मात्रा के आधार पर स्वर
हस्व स्वर – वे स्वर जो किसी के अन्य स्वर से नही बनते है हस्व स्वर कहलाती है।
अ , इ , उ , ऋ दीर्घ स्वर – वे स्वर जो अन्य स्वरों की सहायता से बनते हैं उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं
सजातीय
1 – अ + अ = आ
2 – उ + उ = ऊ
3 – इ + इ = ई
विजातीय
4 – अ + इ = ए
5 – अ + ए = ऐ
6 – अ + उ =ओ
7 – अ + ओ = औ प्लुप्त स्वर – इनका प्रयोग केवल कहानी और नाटक में होता है
Ex – राराऽऽम
मात्रक काल के आधार पर स्वरों को सर्वप्रथम महर्षि पाणिनि के द्वारा अष्टाध्यायी में इसकी रचना की थी।

उच्चारण के आधार पर स्वर
अ , आ = कंठ
ई , इ = तालु
ऊ , उ = ओष्ठ
ऋ = मुर्धा
ए = अ + इ ( कंठ तालु)
ऐ = अ + ए (कंठ तालु)
अ = उ + ओ ( कंठ ओष्ट )
मुखाकृति के आधार पर स्वर
1- संवृत – वे स्वर जिन्हे बोलने मे मुंह बहुत कम खुलता है ex ई , इ , उ , ऊ
2- अर्द्ध संवृत – जिन्हे बोलने में संवृत से थोड़ा अधिक मुंह खुलता है अर्द्ध संवृत कहलाता है
Ex ए , ओ
3- विवृत – जिसमें मुख द्वार पूरा खुलता है , विवृत स्वर कहलाते है ex- आ
4- अर्द्ध विवृत – जिसमें मुख द्वार आधा खुलता है , अर्द्ध विवृत कहलाता है ex – अ, ऐ, औ
व्रताकार / वृत्तमुखी के आधार पर स्वर ( होटों का आकार गोल
करके)
उ , ऊ , ओ , औ
अव्रताकार वाले शब्द कुछ इस प्रकार
अ , आ , ई , इ , ए , ऐ
प्रयत्न के आधार पर स्वर: – जीभ के आधार पर
1 अग्र स्वर ( जीभ के आगे वाले भाग के आधार
पर ) – 4 ( इ , ई , ए , ऐ )
2 मध्य स्वर ( जीभ के मध्य वाले भाग के आधार
पर ) – 1 ( अ )
3 पश्च स्वर जीभ के पीछेवाले भाग के आधार
पर ) – 5 ( आ , उ , ऊ , ओ , औ )
अयोगवाह स्वर 2 होते हैं – अं , अः
व्यंजन कौन से होते है
स्पर्शी व्यंजन कुल 25 होते है
क वर्ग: – क, ख, ग, घ, ङ ( कंठ)
च वर्ग: – च, छ, ज, झ, ञ ( तालु )
ट वर्ग: – ट, ठ, ड, ढ, ण ( मुर्धा )
त वर्ग: – त, थ, द, ध, न ( दंत )
प वर्ग: – प, फ, ब, भ, म ( ओष्ठः)
अंतस्थ व्यंजन – य , र , ल , व
संघर्षीय उष्मीय व्यंजन – श , स , ष ,ह
तालु य , श
मिर्धा र , ष
दंत ल , स
काकल्य वर्ण – ह
Note – ( ङ , ञ , ण , न , म ) – को नासिक्य भी करते है , जिसमे नाक से वायु निकलती है
प्रयत्न के आधार पर व्यंजन के भेद :
स्पर्शी व्यंजन – स्पर्शी व्यंजन उन व्यंजनों को कहते हैं जिनके उच्चारण में मुंह का भाग अन्य भाग को स्पर्श करके बाहर निकलती है उसे इस पर्सी व्यंजन कहते हैं इस स्पर्शी व्यंजनों की संख्या 25 होती है
संघर्षी व्यंजन – संघर्षीय व्यंजन उन व्यंजनों को कहते हैं जिनके उच्चारण में अवयव इतना निकट आ जाता है जिससे वायु मार्ग छोटा पड़ जाता है तथा इसमें वायु संघर्ष के साथ बाहर निकलती है इसे संघर्षीय व्यंजन कहते हैं
जैसे ख, ज, फ,ष्, स् , ग ,श
स्पर्शी संघर्षी – व्यंजन यह वे व्यंजन होते हैं जिनका उच्चारण समय के अपेक्षाकृत अधिक होता है जिसके उच्चारण के समय पहले स्पर्श फिर घर्षण के साथ निकलता है ex च्, छ, ज, झ्
नासिक्य व्यंजन – यह भी व्यंजन है जिनके उच्चारण में वायु प्रमुख नाक से बाहर निकलती है इसे नासिक के व्यंजन कहते हैं ex ङ, ञ, ण, न , म
उत्प्रेक्षित व्यंजन – उत्प्रेक्षित व्यंजन को द्धिगुण भी कहते हैं यह वे व्यंजन होते हैं जिनके उच्चारण में जीभ को ऐसा महसूस करती है जैसे वह इन अक्षरों को फेंक रही है। ex – ड़ , ढ़
पाश्विक व्यंजन – यह वे व्यंजन होते हैं जिनके उच्चारण में जीव मसूड़े को टच करते हुए हवा का वेग जीभ के आसपास बगल से निकलती है
Ex – ल
लुण्ठित व्यंजन – लुंठित व्यंजन उन व्यंजनों को कहते हैं जिसमें जीभ बेलन के आकार की होके वायु बाहर निकलती है इसका उच्चारण करती है ex – र
अल्पप्राण – इसमें वे वर्ण होते हैं जिसके उच्चारण में मुख से कम मात्रा में हवा बाहर निकलती है इसे अल्पप्राण कहते हैं इनमें इस स्पर्शी व्यंजन के पहला , तृतीया और पंचम वर्ण आते हैं ।
महाप्राण – इसमें वे वर्ण आते हैं जिसके उच्चारण में वायु ज्यादा मात्रा में बाहर निकलती है इसमें द्वितीय , चतुर्थ वर्ण होते हैं।
सघोष – इनमें से वर्ण आते हैं जिसमें गले में कंपन होती है बोलने में इन्हें सघोष वर्ण कहते हैं यह इस स्पर्शी व्यंजन के तृतीय ,चतुर्थ और पंचम में होते हैं इनकी कुल संख्या 31 होती है
अघोष व्यंजन – इनमें वे व्यंजन आते हैं जिन्हें बोलने में गले में कंपन नहीं होती है यह स्पर्शी व्यंजन के प्रथम और द्वितीय श्रेणी में आते हैं।